Parle G Success story: जानिए आखिर किस तरह से Parle G ने किया Indians के दिलों पे राज

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Parle G success story

Parle G Success story: दोस्तों क्या आपको पता है हिंदू धर्म में शुरुआत में बिस्किट्स को खाना सही नही माना जाता था. लेकिन पार्ले जी ने कैसे लोगों की मानसिकता को बदला और अब यह हम सभी के दिलों पर राज करता है. तो आज इस पोस्ट में जानिए कैसे सुबह की चाय से लेकर ऑफिस के गॉसिप्स तक हर कदम पर हमारा साथ देने वाले इस बिस्किट ब्रांड को कैसे एक गरीब टेलर ने बनाया और किस तरह इस ब्रांड ने करीब 85 सालों तक अपने बिस्किट के पैकेट का रेट भी नहीं बढ़ाया.

Parle G History:

शायद ही कोई ऐसा भारतीय होगा जिसने चाय में Parle G बिस्किट डुबोकर ना खाया हो और हां कमाल की बात तो यह है कि जितना लगाव आपको इस बिस्किट से है ना उतना ही हमारे मम्मी पापा और दादा-दादी को भी है यही वजह है कि इसे एक बिस्किट नहीं बल्कि एक इमोशन कहा गया है और इस इमोशन की नीव रखी गई थी ब्रिटिश राज में जब बिस्किट्स खाना हम भारतीयों के लिए एक सुनहरे सपने से ज्यादा कुछ भी नहीं था.

लेट 19th सेंचुरी में गिने-चुने कुछ बड़े-बड़े दुकानों में बिस्किट से भरा हुआ टीन का डिब्बा मिलता था. लेकिन इसे मुख्यत Britishers और upper class Indians के द्वारा ही खाया जाता था और इसका कारण था इसकी महँगी कीमत और इसमें बेकर्स अंडे का इस्तेमाल किया जाता था. फिर 7 अगस्त 1905 में स्वदेशी आंदोलन को सपोर्ट करने के लिए कई भारतीय ने लोकल बिजनेसेस भी शुरू किए ताकि फॉरेन प्रोडक्ट्स पर डिपेंडेंसी को कम किया जा सके और इसी बीच गुजरात के टेलर मोहनलाल दयाल जी भी इस आंदोलन से प्रभावित हुए और देश में अपनी खुद की टॉफी और चॉकलेट की कंपनी खोलने की सोची.

इस काम को सिखने के लिए मोहनलाल दयाल जी 1929 में जर्मनी चले गए और वापस आने के बाद मुंबई के विले पार्ले इलाके में एक पुरानी बंद पड़ी फैक्ट्री में अपनी मशीनस को फिट किया. काफी समय के बाद इसकी लोकेशन यानी विले पार्ले के नाम पर ही कंपनी का नाम पार्ले रखा गया इस कंपनी का पहला प्रोडक्ट ऑरेंज कैंडी था जो काफी पॉपुलर था लेकिन मार्केट में अफोर्डेबल बिस्किट्स ना होने की वजह से मोहनलाल दयाल ने इस गैप को फिल करने की सोची और साल 1939 में पर्ले ने पहली बार अपने बिस्किट्स Parle G को मार्केट में उतारा.

Parle G’s business ups and downs:

जब 1947 में भारत आजाद हुआ तो उस समय अचानक से गेहूं की कमी हो गई जिसके चलते पार्ले को अपने ग्लूको बिस्किट के प्रोडक्शन को रोकना पड़ गया एक एडवर्टाइजमेंट में अपने कंज्यूमर से अपील की कि जब तक गेहूं की सप्लाई नॉर्मल नहीं हो जाती तब तक जॉ से बने बिस्किट्स का इस्तेमाल करें. लेकिन 1960 के करीब कई सारी कंपनीज ने ग्लूको बिस्किट के नाम से ही अपने बिस्किट्स को लॉन्च करना शुरू कर दिया इससे कंज्यूमर के बीच में कंफ्यूजन बढ़ने लगी किओरिजिनल ग्लूको बिस्किट है कौन सा और यही वजह से पार्ले की सेल्स लगातार गिर रही थी

लेकिन अपनी गिरते हुए सेल्स को देखते हुए कंपनी ने एक बहुत ही स्ट्रेटेजिक मूव लिया और अपनी ब्रांडिंग को इंप्रूव करने के लिए सबसे पहले तो नई पैकेजिंग बनाने का फैसला किया जिसके बाद से पार्ले का बिस्किट एक पीले वैक्स पेपर में लपेट कर आने लगा इसके ऊपर लाल रंग की पारले ब्रांडिंग के साथ एक छोटी लड़की की तस्वीर भी लगी थी. इस नई ब्रांडिंग ने बच्चों और उनके पेरेंट्स को खूब अट्रैक्ट किया साथ ही बाकी के ब्रांड्स के बीच पार्ले अपनी एक अलग छाप छोड़ने में भी कामयाब हो गया साल 1982 में कंपनी ने पर्ले ग्लूको को पर्ले जी के रूप में रीपैकेज किया जिसमें जी का मतलब था ग्लूको.

Parle G business turnover:

दोस्तों शुरुआत में तो पले अपने सस्ते और अच्छे क्वालिटी की वजह से बिस्किट मार्केट को पूरी तरह से डोमिनेट कर रहा था लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि करंट सिनेरियो में भी Parle G का इंडिया में 40 पर से ज्यादा मार्केट शेयर है जो कि किसी भी बिस्किट ब्रांड में सबसे ज्यादा है. 1998-99 में पार्ली जी ने ₹ 56 करोड़ का प्रॉफिट जनरेट किया था. साल 2012 तक पर्ले 40 लाख दुकानों के जरिए अपने प्रोडक्ट्स को बेचा करता था और 2013 में पर्ले जी का टर्न ओवर 1000 करोड़ से भी ज्यादा का हो गया था

कोरोना के टाइम पर जो लॉकडाउन में भी पार्ले जी को बहुत ज्यादा फायदा मिला और कंपनी का टर्नओवर बढ़कर 8800 करोड़ को भी क्रॉस कर गया आज पर्ले जी वर्ल्ड का लार्जेस्ट सेलिंग बिस्किट ब्रांड है जो हर महीने 1 अरब बिस्किट्स के पैकेट्स बनाता है और हर एक सेकंड में ऑन एन एवरेज 4551 पारलेजी के पैकेट्स कंज्यूम कर लिए जाते हैं.

Parle G secret formulas:

Parle G ने लोगों के दिलों को जितने के लिए market research पे शुरु से ही बहुत ध्यान दिया है. इसने न केवल अपने प्रोडक्ट के taste और quality बल्कि advertisement से भी लोगों को लुभाया है. साल 1982 ही Parle G का पहला टीवी कमर्शियल आया था इसके बाद से 1998 में पार्ले जी को शक्तिमान के रूप में ब्रांड एंडोर्सर मिला और सुपर हीरो शक्तिमान की वजह से बच्चों में पार्ले जी खूब पसंद किया जाने लगा इसके बाद जी मने जीनियस हिंदुस्तान की ताकत रोको मत टोको मत जैसी टैगलाइन ने पर्ले जी को हमेशा चर्चे में बनाकर रखा.

कंपनी ने बहुत पहले ही मार्केट पर रिसर्च करके लोगों की पसंद और नापसंद को समझना शुरू कर दिया था और अपने कई products को लॉन्च किया. साल 1938 में पार्ले ने मोनाको बिस्किट, 1956 में पार्ले चीज लिंगस, 1963 में टॉफी किस्मी, 1966 में पॉपिंस आदि कई तरह ही कई सारे प्रोडक्ट्स को मार्केट में उतारा जो कि काफी पसंद किए गए और इनके मदद से पार्ले इंडिया के बिस्किट मार्केट पर अपना कब्जा जमाने में कामयाब हो गया.

Why Parle G is the cheapest biscuit:

इन बिस्किट्स की डिमांड जिस तेजी से इंक्रीज हो रही थी इनकी जगह कोई दूसरी कंपनी होती तो सबसे पहले अपने प्रोडक्ट के प्राइस को बढ़ा देती. एक बार कंपनी ने अपने बिस्किट पर सिर्फ 50 पैसे बढ़ाए थे तो इनकी सेल ड्रॉप होने लगी और लोग सड़क पर प्रोटेस्ट भी करने लगे थे ऐसे में पर्ली जी के मैनेजमेंट टीम ने डिसाइड किया कि वह बिस्किट के प्राइस को नहीं बढ़ाएंगे बल्कि क्वांटिटी को कम करते जाएंगे इसीलिए पहले जहां ₹1 में पार्ले जी के 100 ग्राम का पैकेट मिलता था वही आज ₹5 में सिर्फ 55 ग्राम ही मिलता है. एक्चुअली कंपनी बहुत अच्छे से समझती है कि कंज्यूमर्स को एक्स्ट्रा पैसे देना बिल्कुल पसंद नहीं है.

अब देखा जाए तो Parle G कंपनी का एक हीरो प्रोडक्ट है जो देश के हर कोने में आसानी से मिल जाता है लेकिन पार्ले जी का बोलबाला सिर्फ इंडिया में ही नहीं बल्कि US, UK, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसी कई कंट्रीज में भी Parle G को बहुत ज्यादा पसंद किया जाता है और तो और कई सारे देशों में तो इसकी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स भी अवेलेबल हैं साथ ही हम इंडियंस की तरह ही चाइनीज भी इस बिस्किट के दीवाने हैं इसीलिए पारलेजी चाइना में भी सबसे ज्यादा बेचे जाने वाला बिस्किट बन गया है.

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